Friday, April 2, 2010

Local Train ka 'suffer'

Something that i wrote long back (2005) for the VJTI College magazine...but still very relevant, and I guess it will always be (was reminded of this when travelling in the local train yesterday!)

सुबह सुबह में चल दिया
फिर एक बार college की ओर
Weather report थी "bright and sunny"
पर बादल छाए थे घनघोर

पर जब पहुंचा में
तो देखा train थी दो मिनट late
खुश हुआ में यह जानकर
सोचा करूंगा थोडा wait

इसी बीच train आती दिखी
सब लोग हो गए तैयार
Bag आगे, sleeves ऊपर
मैंने भी किया challenge स्वीकार

Train रुकने से पहले ही
लोगों की शुरू हो गयी मशक्कत
मैंने भी एक को दायाँ हाथ मारा
और bar पकड़ा करके हिम्मत

पीछे वालों के धक्के की बदौलत
में आराम से पहुँच गया अन्दर
"शाबाश" मैंने अपने आप से कहा
क्योंकि जो जीता वही सिकंदर! (:P)

इतने में ट्रेन शुरू हुई
और as usual शुरू हुआ लोगों का झगडा
"क्या Boss, धक्का क्यों मारा?"
"चुप कर, वरना दूंगा एक झापड़ तगड़ा!"

और फिर शुरू हूए
यात्रियों के बीच के चर्चे
"अरे यार salary कितनी कम,
और कितने ज्यादा है यह खर्चे!"

"गांगुली को तोह निकाल ही दो*,
उसे कुछ भी ठीक से नहीं आता!"
"यार stock market का क्या हाल है,
कल फायदा हुआ या घाटा?"

"अरे भाई मिठाई खाओ,
में बाप बन गया हूँ!"
"मुह खोल देता हूँ, तुम खुद ही खिला दो,
में तो चारों तरफ से घिर गया हूँ"

इतनी interesting बातों में
पता ही नहीं चला कब स्टेशन आया
और फिर आराम से उतरा में
कुछ धक्का दिया, और कुछ खाया

और फिर मैंने सोचा
ज़िन्दगी भी तो ट्रेन का एक सफ़र है
Enjoy करो तो है यह अमृत
न करो तो फिर यह ज़हर है

ज़िन्दगी में भी कई लोग
हमें हँसाते हैं, रुलाते हैं!
किसी station पर चढ़ते हैं
और किसी पर उतर जाते हैं!

* PS: My sincere apologies to all dada fans :P

3 comments:

Jagdish_Bagdi said...

Very refreshing indeed!!!

Ravi said...

Awesome !!! Reminds me of old times :)

Unknown said...

Good one bhaiya!! & I thought only aunty could write...i guess its i ur genes :)